Ahmad Rizvi

इस्लाम को ऐसे भी त्यागा जा सकता है : 1

प्रत्येक धर्म के अपने अपने अलग सिद्धान्त है उनकी अपनी अपनी किताबे या पुस्तके है जैसे यहूदियों के लिए तौरेत /ओल्ड टेस्टामेंट ज़बूर है ईसाई के लिए इंजील या बाइबिल मुसलमानो के लिए कुरान मजीद ,पारसी के लिए अवेस्ता ,जैनियों के लिए अगम सिखो के लिए गुरुग्रंथ साहब है हिन्दुओ की पवित्र पुस्तक वेद है । सभी धर्मो की पुस्तके अपने धर्म को दैवीय ताकत /शक्ति के द्वारा उतरना बताता है।मुसलमान भी इस पर यकीन रखता है कि अल्लाह के द्वारा चार किताबे नाजिल /उतारी गयी है वह है तौरेत/ओल्ड testament ज़बूर, इंजील/new testament व कुरान मजीद। अब उस अल्लाह पर ईमान रखने वाला मुसलमान या मोमिन को उसके नबी की रिसालत की गवाही देनी है ,अल्लाह की नाजिल/उतारी गयी किताबों पर उसे ईमान लाना है फरिश्तों पर उसे ईमान लाना है साबिक यानी पिछले अंबियाओ /नबियों/पैगम्बरों/रसूलो पर ईमान रखना है ,ईसा ,मूसा दाऊद सुलेमान सालेह शीश ,अय्युब ,इब्राहिम दानिएल नूह आदम से खातम तक ये ईमान जिसे उसने पढ़ा और जाना है बल्कि उन पर भी ईमान लाना है जिसे वह नहीं जानता या पढ़ा है मगर उन नबियों की तालिम या शिक्षा
ला इलाहा इल्लललाह
हो कोई नहीं है इलाहा/पूजनीय सिवाय अल्लाह के हो उन पैगम्बरों /नबियों/रसूलो की कुल मिलाकर तादाद/संख्या इस्लाम मे 1,24,000=00 (एक लाख चौबीस हज़ार ) बतायी गई है।अब कुछ सवाल है जिनसे यह पता चलता है कि एक मुसलमान मुसलमान नहीं रह जाता : अल्लाह और अल्लाह के नबी का इक़रार करता हो मगर क़यामत का या फरिश्तों का,या जन्नत का या दोज़ख का इन्कार करता हो मुसलमान नहीं रह जाता। अल्लाह और अल्लाह के नबी का इक़रार करता हो मगर पिछले पैगम्बरों मे किसी का इन्कार करता हो अल्लाह और अल्लाह के नबी का इक़रार करता हो और अल्लाह के द्वारा नाजिल/उतारी /reveal की गई किसी एक आयत का इन्कार करता हो मुसलमान नहीं रह जाता

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