Ahmad Rizvi

अगर अल्लाह न हुवा !

अमीरुल मोमिनीन इमाम हज़रत अली से एक काफिर ने सवाल किया कि आप जो नमाज़ रोज़ा करते है अगर अल्लाह न हुवा तो यह सब बेकार हो जाएगा । आप ने उसके इस तंज़ पर जो जवाब दिया वह रहती दुनिया तक के लिए है और उसके बाद भी है । आप ने फरमाया “ मैंने अल्लाह को इरादों की शिकस्तगी से पहचाना “ इस पर गौर करने वाली बात है जो यह है कि आपने कोई इरादा किया और उस इरादे को तोड़ देने वाली ताकत अगर कोई है तो वो अल्लाह की है । इरादे के अन्तर्गत सभी आते है किसी का कोई मजहब हो धर्म हो छोटा हो बड़ा हो और इरादे को तोड़ देने वाली ताकत से उस शक्ति की पहचान होती है । उदाहरण के लिए हज़ारों मामले है अब इसको ऐसे देखते है कि “ आपका का कोई गहरा दोस्त है और उस दोस्त के लिए आप अपनी जान और माल को कुर्बान करने के लिए तैयार रहते है इसके बावजूद एक ऐसा वक्त आता है जब आप उसके दुश्मन बन जाते है और उसकी जान के प्यासे बन जाते है । इसको इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के अमेरिका और सऊदी अरब से गहरे रिश्ते थे और 1980 से 1988 तक ईरान पर जंग थोपने के लिए इराक का साथ दिया घातक हथियार दिया। इसके बाद जब 2 अगस्त 1990 को कुवैत पर इराक ने हमला कर दिया उस वक्त सऊदी अरब ने अमेरिका की फौज और तमाम दुनिया भर के देशों को बुलाया और इराक और सद्दाम के जानी दुश्मन बन गए और ईंट से ईंट बजा दी। यहाँ कल तक जो दोस्त थे उनके इरादे बदल गए और अब दुश्मन बन गए । अमेरिका इस्राइल दोनों ईरान के राजा रज़ा शाह पल्लवी के दोस्त थे और आयतउल्लाह रूहउल्लाह खुमैनी के द्वारा तख्ता पलट के बाद अमेरिका दुश्मन बन गया ईरान का आगे चलकर इस्राइल भी दुश्मन बन गया ईरान का । आज वर्तमान मे इराक और ईरान दोस्त बन चुके है ।

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