Ahmad Rizvi

झूठा प्रचार

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दुनिया भर मे प्रचार और झूठा प्रचार होता रहता है । इस झूठे प्रचार के नकारात्मक (मनफी) प्रभाव से इंसान का बड़ा नुकसान होता रहा है । अक्सर आपने सुना होगा कि एक समुदाय (तबका) अपने नबीयों के बारे मे सच को न जानते हुए झूठा प्रचार करना शुरू कर देते है । इसी तरह हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के खिलाफ जादूगर होने का प्रचार किया गया । आज के दौर की तरह उस समय संचार के माध्यम (means of communication) इतने तेज़ नहीं थे इसके बावजूद मौखिक (ज़बानी) प्रचार के द्वारा एक दूसरे तक बात फैलाते थे उस बात की सच्चाई को जाने बिना या तसदीक किए बिना सच मान लेते थे । अब अल्लाह सुभान व तआला के नबी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के जानशीन अमीर-उल –मोमीनीन के बारे मे जो प्रचार किया गया उसको देखे “ जब हज़रत अली इब्ने हज़रत अबू तालिब पर नमाज़ मे सजदे के दौरान सर पर ज़हर बूझी हुई तलवार से अब्दुर रहमान इब्ने मुलजिम के द्वारा हमला किया और उस ज़ख्म के दौरान हुई शहादत की खबर जब शाम आज का सीरिया मुल्क के लोगों (अवाम ) तक पहुंची तो लोग हैरान होकर पूछते थे कि

अमेरिकी और पाकिस्तानी आतंकवाद का गठजोड़

अमेरिकी आतंकवाद की शुरुवात हिरोशिमा और नागासाकी शहरों जो जापान के शहर है उस पर परमाणु बम से हमले से हुई थी इसके बाद वियतनाम पर अमेरिकी आतंकवाद को दुनिया मे देखा गया ,पनामा पर अमेरिकी आतंकवाद के पश्चात अफगानिस्तान पर अमेरिकी आतंकवाद की शुरुवात की गयी इस आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए सऊदी अरब और पाकिस्तान ने महत्वपूर्ण रोल अदा किया उस समय अमेरिका की पुश्तपनाही पर पाकिस्तान के द्वारा आतंकवादी तैयार किए जाते थे हथियार और आतंकवादीयों को प्रशिक्षण अमेरिका देता था और सोवियत संघ से लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेजा गया अमेरिकी आतंकवाद को धार्मिक या मज़हबी रंग देने के लिए उस वक़्त के अमेरिकी आतंकवाद को अमेरिकी आतंकवाद नहीं कहा जाता था उसे पूरी दुनिया के मीडिया के द्वारा “जेहाद “ कहा जाने लगा और लड़ने वाले लोगों को मुजाहिदीन कहा जाता था। मुसलमान लड़ रहे थे वो भी उस जेहाद के लिए जो “अमेरिकी आतंकवादी जेहाद “ था । अमेरिकी आतंकवाद की बड़ी फौज तैयार करने के बाद अमेरिकी उद्देश्य न पूरे होने के कारण 11 सितम्बर 2001 मे वर्ल्ड ट्रैड सेंटर पर हमला किया गया जिसका बहाना लेकर अफगानिस्तान पर हमला किया गया । अफगानिस्तान से तालिबान को खदेड़ दिया गया और 20 वर्षों बाद अर्थात सन 2021 मे अमेरिका को अपने आतंकवादी याद आए और अपनी प्रॉक्सी को मजबूत करने के लिए अपने सैन्य साजो सामान को अफगानिस्तान मे उसी तालिबान को देकर गया जिसके लिए अमेरिका और उसके इत्तेहादी ने सन 2001 मे बलात हमला करके जबरन सत्ता से तालिबान को बेदखल किया था । इस अमेरिकी आतंकवाद के क्या परिणाम निकले तो उसका एक परिणाम अफ़ग़ानिसतान की बेगुनाह अवाम/पब्लिक का बेतहाशा खून बहाया गया कत्लेआम किया गया जिसमे अकसरियत/majority मुसलमानों की थी अफ़ग़ानियों को अपाहिज किया गया उनके ऊपर आतंकवादी अमेरिका ने mother of all bomb और deplicted uranium bomb का इस्तेमाल किया गया और इस जंग का प्रभाव अफ़ग़ानों को भूखमरी के कगार पर ला खड़ा किया अफ़ग़ानियों को गरीबी के दल दल मे धकेल दिया गया । अफगानिस्तान मे अमेरिकी आतंकवाद को प्रॉक्सी तालिबान को हथियार के साथ खड़ा करके किन उद्देश्यों को पूरा किया गया । दूसरी ओर लंबे समय तक ज़िल्लत उठाने वाला और अमेरिका की गाली खाकर उसके साथ खड़ा होने वाला पाकिस्तान मे जब से इमरान खान की सरकार आई उसने अमेरिका के काले करतूत को जनता के सामने रख दिया और रूस से पाकिस्तान के सम्बन्धों को आगे बढ़ता देखकर अमेरिका तिलमिला गया और अमेरिका ने इमरान सरकार को पलटने मी अहम भूमिका निभाई पाकिस्तान की नाक कटाने वाली फौज (जिसे सन 1971 भारत पाक युद्ध मे भारत ने शिकस्त दी और 90000 पाकिस्तानी फौज ने शर्म के साथ surrender /समर्पण कर दिया था इस ज़िल्लत आमेज़ शिकस्त के बाद पाकिस्तानी फौज का मनोबल हमेशा के लिए गिर गया )पाकिस्तानी फौज अमेरिकी बूटों के नीचे काम करने को राज़ी हो गयी । इस सत्ता के पलटने के साथ ही पाकिस्तान से सैन्य साजो सामान ब्रिटेन के माध्यम से युक्रैन को हथियार पहुंचाए जाने लगे । इमरान खान ने अपनी सरकार के दौरान अपने विचार रखते हुए बार बार यह दोहराया था कि वो किसी देश के मफाद / interest के लिए काम नहीं करेंगे। इसका सीधा मतलब यह था कि अमेरिका की साजिश के अन्तर्गत ईरान के खिलाफ अमेरिकी आतंकवाद को समर्थन नहीं देंगे। शमशी एयरबेस को अमेरिका को देने से इनकार कर दिया। शहबाज़ शरीफ और नवाज़ शरीफ जिन पर corruption के आरोप के साथ अदालतों मे मुकदमा चल रहा है अपने अपराधों से बचने के लिए अमेरिकी आतंकवाद के लिए काम करने और अमेरिकी गाली को पाकिस्तान को खिलाने के लिए काम करने को राज़ी हो गए । दुनिया मे अकेली नाक कटाने वाली पाकिस्तानी फौज भी अमेरिकी आतंकवाद के लिए काम करने को राज़ी है । ईरान मे हिजाब के खिलाफ परदर्शन उसी तरह कराए जा रहे है जैसे सीरिया और लीबिया मिश्र मे कराए जाने के बाद अमेरिकी आतंकवाद को सीरिया मे घुसेड़ दिया था । उसी तरह अफगानिस्तान और पाकिस्तान को ईरान के खिलाफ काम करने के लिए राज़ी करके पाकिस्तान और अफगानिस्तान के माध्यम से अमेरिकी आतंकवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए काम करना शुरू कर दिया है । इसमे " अमेरिकी आतंकवादी उद्देश्यों " को एक बड़ा फायदा यह होगा कि अमेरिकी और पश्चिमी देशों की जान -माल इज़्ज़त आबरू के बजाए हर ओर से मुस्लिमों की ही जान-माल इज़्ज़त आबरू का नुकसान होगा । अमेरिकी आतंकवाद मे पाकिस्तानी हुक्मरानों के अलावा पाकिस्तानी फ़ौज भी अमेरिकी बूटों के नीचे काम करने के लिए इसलिए तैयार है कि उनको डालरों से मदद मिल जाएगी एक बेगैरत कौम और भूखी नंगी कौम को क्या चाहिए " दो रोटी कुछ डालर " के बदले अपनी गैरत को बेचना कोई महंगा सौदा नाही है । ईरान को "अमेरिकी आतंकवाद और उसके प्रॉक्सी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवादी गठजोड़ से वक़्त रहते सजग रहने की ज़रूरत है । "

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