Ahmad Rizvi

POK और COK

POK और COK पाकिस्तान अधिक्रत कश्मीर या पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किया गया कश्मीर को ही पी.ओ.के. कहते है और चीन के द्वारा कब्ज़ा किए गये कश्मीर को सी.ओ.के. कहते है । हाल ही मे दो महत्वपूर्ण घटनाए हुई है । लंदन से भारतीय विदेश मंत्री का POK को वापस लाने का अज़म लेते हुवे बयान देना । इसके साथ ही कारगिल मे भारत के द्वारा पहली बार C-17 ग्लोब मास्टर जैसे विशालकाय विमान की सफलतापूर्ण लैन्डिंग कराना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि को दर्शाया गया है । जिससे रसद, गोला बारूद, आर्म्स और एमूनेशन, सैनिकों को तेज़ी के साथ फ्रन्ट लाइन तक पहुंचाया जा सकता है । जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री ने POK के साथ चीन अधिक्रत कश्मीर, को भारत का हिस्सा बताया और उसे वापस न लाने के लिए कोई बयान नहीं दिया गया, इस पर टिप्पणी की गई जिसका भारतीय जनता पार्टी और उसकी सिस्टर संस्थाये अपने नेता के इशारों पर विरोध परदर्शन करना आरंभ किया जा चुका है । सन 2020 मे गलवान संघर्ष को मद्देनजर रखते हुवे जो अभी तक गतिरोध बना हुआ था हाल ही मे गतिरोध टूटा है। ऐसे मे चीन पर बयान देकर पूर्व के हालात सीमा पर बन जाए । लेकिन ऐसा नहीं है की चीन अधिक्रत कश...

विधवा विवाह

आज से 1400 साल पहले इस्लाम मे विधवा विवाह को आरम्भ किया और तलाक़शुदा महिलाओ का भी दोबारा विवाह की शरुवात की गयी इससे पहले दुनिया की तमाम सभ्य व असभ्य (मोहिज़्जिब और गैर मोहिज़्जिब) लोगों मे महिलाओ के साथ क्या सुलूक किया जाता था किसी कारण अगर महिला का पति की मौत हो जाती थी तो उस महिला को अशुभ मानते थे उसके बाल का मुंडन कर दिया जाता था दूसरा विवाह करना वर्जित था ऐसी महिला का तिरस्कार किया जाता था समाज मे उसके जीने के लिए कोई अधिकार नहीं था कुछ इलाकों के लोग पति के साथ ही जिंदा उसकी पत्नी को भी चिता मे जला देते थे। जब जीने का अधिकार नहीं देते थे तो संपत्ति का अधिकार कहाँ से देते। इसके साथ ही तलाक़शुदा महिलाओ की भी स्थिति बदतर थी । विभिन्न धर्मों मे जहां विधवा विवाह वर्जित था उन धर्मों के मानने वाले लोगों ने भी इस्लाम के इस नैसर्गिक कानून (natural law) को मानने को बाध्य हुए है और सैकड़ों वर्षों बाद इस्लाम के इस कानून को अपनी खुशी और अपने संतानों की खुशी के लिए विधवा विवाह और तलाक़शुदा का पुनर्विवाह को सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस्लाम को जो नहीं भी मानते थे और वो जो इस्लाम का विरोध करते थे वो भी इस्लाम के इस कानून को मानने के लिए बाध्य है।

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