हज़रत अली असगर वो नन्हा मुजाहिद जो अभी घुटनों के बल /सहारे भी नहीं चला था उसने मैदान करबला में किन लोगों को उजागर कर दिया। शीरख्वार (दूध पीने वाला ) बच्चा ने क्या ऐसा किया कि दुश्मनों को रोने पर मजबूर कर दिया। नन्हें मुजाहिद ने मुनाफिको के भेष में काफिर को कैसे बेनका किया।
सबसे पहले हम एक आयत जिसे आप लोगों ने भी बहुत पढा है और लोगों को भी बहुत सुनाई जाती है। मुसलमान अक्सर इस आयत को गैर मुस्लिमो को भी सुनने है और मुसलमानों को भी सुनाते है।
"मन कत्ला नफसन बेगैर निसिन अव फसादिन फिर अर्ज फक अन्नमा कत्लाननास जमीअन व मन अहयहा फकअन्नमा अहयहा फकअन्नमा अह्न नासा जमीआ
सूरा माएदा (5) आयत न. 32
जिसने किसी इंसान को खून के बदले या ज़मीन में फसाद फैलाने के सिवा किसी और वजह से कत्ल किया तो (वो ऐसा है) जैसे उसने तमाम /समस्त इंसानो का कत्ल कर दिया और जिसने किसी को ज़िन्दगी बख्शी उसने जैसे तमाम इंसानो को ज़िन्दगी बख्शी।
क़ुरान मजीद की इस आयत में खून के बदले यानी कत्ल किया हो या वो फसाद फैलाने के अलावा कत्ल किया जाता है तो सारी इंसानियत का कत्ल किया गया। यहां पर किसी मज़हब, धर्म, रिलीजन, फिरका, सम्प्रदाय, का उल्लेख नहीं है। वो इंसान काफिर हो, मुशरिक हो, मुनाफ़िक़ हो ,मोमिन हो, पाखंडी हो, कोई हो अगर उसकी खता उपरोक्त के अलावा कत्ल किया गया।
आइये, हदीस का अध्ययन करते है
अक्सर मुसलमान नबी करीम सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम का इरशाद सुनाया जाता है जिसमें यह बताया गया है कि दौरान जंग, फसल को उजाडा न जाए, बुढो और बच्चों का कत्ल न किया जाए और उन जवानो को भी कत्ल न किया जाए जो तुमसे न लड़। सिर्फ उनसे जंग की जाए जो तुमसे लड़के।
यहां जंग मे भी सिद्धान्त /उसूल है कि आम अवाम (जनमानस) में बिना किसी धर्म, मज़हब, मिल्लत समुदाय नस्ल का इम्तियाज़ (भेदभाव) किए आम लोगो के भलाई के लिए कानून है। बघ्चो, बूढो और औरतों और जो तुमसे न लड़े उनसे मत लड़ो।
मुस्लिम, ईसाई, यहूदी, और अन्य धरमो में भी यह है कि ---------भूखे को खाना खिलाओ, प्यासे को पानी पिलाओ जो नंगे है उन्हें वस्त्र पहनाओ। यह शिक्षा सभी मे है।
आइये एक और हदीस को जानते है जिसमें यह कहा गया है, अगर कोई प्यासा हो तो उसको पानी पिलाओ यहां तक कि जानवरो को भी पानी पिलाने का हुक्म है।
कुरान की तालीम, रहमतुलील आलमीन मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम की पैरोकार बताने वाली कौम ने किया।
1. यह बात सही है हज़रत अली असगर इमामज़ादे है, नबी का खून है, इमाम हुसैन की औलाद, फातहे बद्र, फातहे खैबर, फातहे खन्दक, यहां तक की जिस जंग में भी हज़रत अली गये फातहे होकर आए उनका पौत्र है अली असगर इसके अलावा बेगुनाह मासूम बच्चा है।
2. हज़रत अली असगर प्यासे है बेइन्ताहा प्यासे है जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इरशाद फरमाते है तुम हुज्जते खुदा के बेटे हो हुज्जत को तमाम कर दो आपने अपनी ज़बान को होंटो से फेरना शुरू कर दिया। बदले में जो अपने को रसूलुल्लाह का उम्मत, शैदाई बताने वाली क़ौम ने बच्चे को पानी से नहीं तीर से जिसे त्रिशूल या तीन भाल का तीर कहते हैं, से शहीद कर दिया।
3. फिर देखते हैं कि रसूलुल्लाह सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम की जंगी उसूल को क्या महत्व दिया जिसमे बच्चे बूढे औरतों और जो तुम से न लड़े उनसे न लड़। यहां वह बच्चा (हज़रत अली असगर) है जिसकी उम्र छः माह है जिसकी दुनियां में किसी मज़हब, धर्म, मिल्लत से कोई दुश्मनी नहीं।
उपरोक्त तथ्यों, नज़रियों को देखने के बाद यह सपष्ट रुप से कहा जा सकता है कि करबला में इमाम हुसैन के विरूद्ध लड़ने वाले लोग, न क़ुरान पाक को मानते थे, न हदीस का पालन करते थे न मानते थे बल्कि रसूलुल्लाह के बदतरीन मुखालिफ व दुश्मन थे जो इस्लाम से हार जाने के बाद अब इस्लाम मे रहकर मुनाफ़िक़ बनकर इस्लाम के सिद्धान्तो /उसूलों की जड़ खोद रहे थे।
और हज़रत अली असगर ने दुनिया जहां को एक और पैगाम दिया दुनिया में कहीं भी नन्हें बच्चो का कत्ल किया जाता हो समझ लेना इन्सान के रुप में हैवान से भी बदतर मख्लूक है जिसे अल्लाह ने क़ुरान मजीद में ज़ालीम कहकर पुकारा और भर्तसना /मज़म्मत की है।
उससे बड़ा ज़ालीम कौन है जो क़ुरान की आयतो का इन्कार करे।
तुम इमानवाले तब तक नहीं हो सकते जब तक तुम्हारी जान माल से ज़यादा नबी करीम सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम की मोहब्बत न हो।
आज भी यज़ीद लानत उल्लाह अलैह की पैरवी रसूलुल्लाह सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम की खुल्लम खुल्ला मुखालफत है।
नबी करीम सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम का उत्तराधिकारी,झूठा, ज़ालिम, शराबी, ज़िनाकार, खाइन नहीं हो सकता।
रिसालत के एवज में मेरी इतरत से मोअददत करो।
इतरत से मोअददत के हुक्म के बाद उनके दुश्मनों की पैरवी क़ुरान मजीद के हुक्म की मुखालफत करना है।
उससे बड़ा ज़ालीम कौन है जो क़ुरान की आयतो का इन्कार करे।
तुम इमानवाले तब तक नहीं हो सकते जब तक तुम्हारी जान माल से ज़यादा नबी करीम सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम की मोहब्बत न हो।
आज भी यज़ीद लानत उल्लाह अलैह की पैरवी रसूलुल्लाह सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम की खुल्लम खुल्ला मुखालफत है।
नबी करीम सललल्लाहो अलैह व आलेे वसल्लम का उत्तराधिकारी,झूठा, ज़ालिम, शराबी, ज़िनाकार, खाइन नहीं हो सकता।
रिसालत के एवज में मेरी इतरत से मोअददत करो।
इतरत से मोअददत के हुक्म के बाद उनके दुश्मनों की पैरवी क़ुरान मजीद के हुक्म की मुखालफत करना है।
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