Ahmad Rizvi

झूठा प्रचार

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दुनिया भर मे प्रचार और झूठा प्रचार होता रहता है । इस झूठे प्रचार के नकारात्मक (मनफी) प्रभाव से इंसान का बड़ा नुकसान होता रहा है । अक्सर आपने सुना होगा कि एक समुदाय (तबका) अपने नबीयों के बारे मे सच को न जानते हुए झूठा प्रचार करना शुरू कर देते है । इसी तरह हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के खिलाफ जादूगर होने का प्रचार किया गया । आज के दौर की तरह उस समय संचार के माध्यम (means of communication) इतने तेज़ नहीं थे इसके बावजूद मौखिक (ज़बानी) प्रचार के द्वारा एक दूसरे तक बात फैलाते थे उस बात की सच्चाई को जाने बिना या तसदीक किए बिना सच मान लेते थे । अब अल्लाह सुभान व तआला के नबी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के जानशीन अमीर-उल –मोमीनीन के बारे मे जो प्रचार किया गया उसको देखे “ जब हज़रत अली इब्ने हज़रत अबू तालिब पर नमाज़ मे सजदे के दौरान सर पर ज़हर बूझी हुई तलवार से अब्दुर रहमान इब्ने मुलजिम के द्वारा हमला किया और उस ज़ख्म के दौरान हुई शहादत की खबर जब शाम आज का सीरिया मुल्क के लोगों (अवाम ) तक पहुंची तो लोग हैरान होकर पूछते थे कि

रहबर

रहबर एक ऐसा रास्ता दिखाने वाला जिसके नेत्रत्व मे उसके चाहने वाले या तो उत्थान करते है या पतन की ओर चले जाते है । मौजूदा दौर मे हमने मुसलमानों के कई रहबर देखे जिन्होंने पतन और उत्थान की ओर ले गए । एक रहबर ईरान का बादशाह रज़ा शाह पहलवी था जो अमेरिका का प्रतिनिधि बन कर ईरान मे बादशाहत करता था और ईरान का आतंकी इस्राइल से अच्छे तालुक थे , पाकिस्तान: पाकिस्तान के ज़्यादातर हुक्मरान अमेरिका का ही प्रतिनिधित्व करते रहे है । लाखों मुसलमानो का कत्ल कराने मे अहम रोल अदा किया , और उसके बदले मे डॉलर लेते रहे आज इस सिथती मे पहुँच गए जहां से भीख मांगने और विघटन होने के कगार पर है । सऊदी अरब : इनके शासकों का वजूद ब्रिटिश हुकूमत की मेहरबानी से बना आज तक इन शासकों के पेशवा यही देश है इनको पश्चिमी देशों ने मूर्ख बनाया या बने बनाये मूर्ख थे फ़िलिसतीन को धोखा देने और दिलाने मे सऊदी अरब की मुख्य भूमिका रही , कभी ओस्लो समझौता , कभी अब्राहम अकॉर्ड ,कभी यूएनओ मे बेइज्जती मगर मुस्लिम कौम को पतन मे पहुंचाने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । फ़िलिस्तीन का कत्ल हो , इराक़ी का कत्ल हो ,सीरिया यमन के कत्ल कराने मे अहम भूमिका निभाई और अन्य जगह मुसलमानों को कत्ल कराने मे अहम भूमिका निभाई । इराक : इराक के शासक सद्दाम हुसैन जो अमेरिका और CIA के प्रिय थे ईरान से युद्ध करने और पश्चिमी देशों के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लाखों मुसलमानों को कत्ल करा दिया अमेरिका के कहने पर कुवैत पर हमला किया और वाहन भी मुसलमानों का कत्ल कराया इसके बाद ईसाई ताकतों का मोहरा बन गए और इराक़ी लोगों को कत्ल कराया । अफगानिस्तान : सोवियत संघ से लड़ने के लिए नाटो की मदद से अफगानिस्तान के लोगों का खून बहाकर सोवियत संघ को हरा दिया और उसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमले का बहाना यह लिया कि 9/11 मे अमेरिका पर हमला किया इसके बाद समस्त ईसाई हुकूमतों ने अफगानिस्तान पर मुसलमानों का बेदरेग खून बहाया और तबाह कर दिया । यहाँ आप ने देखा अमेरिका से प्रभावित और अधीन रहने वाले शासकों ने मुसलमानों को तबाह और बर्बाद करने मे अहम भूमिका निभाई । दूसरी ओर अमेरिका का विरोध करने वाले ईरान के आयतउल्लाह खुमैनी के नेत्रत्व मे जो ईरान है उसके कारनामे देखिए : 1. सन 1982 मे लेबनान मे 20000 मुसलमानों का कत्ल करने वाले आतंकी इस्राइल को सबक सिखाने और आतंकी इस्राइल को उसी की ज़बान मे जवाब देने के लिए HIZBOLLAH का गठन कराया । 2. FILISTEEN जो आतंकी इस्राइल की गोलियों का शिकार हो रहे थे उन्हे मुसल्ला किया और आतंकी इस्राइल को उसी की ज़बान मे जवाब देना सिखाया । 3. इराक के परमाणु रिएक्टर पर सन 1982 मे आतंकी इस्राइल के हमले के बाद ईरान ने परमाणु रिएक्टर की सुरक्षा की और परमाणु सम्पन्न देश बन गया । 4. अमेरिका और पश्चिमी देशों के लाख पाबंदियों के बाद लड़ाकू विमान यात्री विमान MISSILE ,ड्रोन बनाया हर क्षेत्र मे सफलता के झंडे गाड़ते देखा गया । 5. सन 1991 मे खाड़ी जंग मे भी अमेरिका और पश्चिमी देश को किसी तरह की कोई मदद नहीं दी बल्कि अपने हवाई क्षेत्र का भी इस्तेमाल नहीं करने दिया जबकि इससे पहले इराक ने ईरान बहूत बड़ी जानी व माली नुकसान पहुंचा चुका था । 6. अफगानिस्तान मे भी अमेरिका और नाटो देशों के किसी भी सैनिक को कोई मदद नहीं दी जबकि पाकिस्तान ने अमेरिका और नाटो की भरपूर मदद की । एक बेहतरीन रहबर का यह फर्क होता है जिसने किसी भी मुसलमान को नुकसान नहीं पहुँचने दिया और दूसरी ओर वो रहबर जिनके द्वारा अपने ही अकीदे के मुसलमानों का बेदरेग खून बहाया । आतंकी इस्राइल भी आज अपने वजूद के खत्म होने से घबरा गया । और एक वो रहबर है जो दुश्मनों की गोद मे बैठने के बाद उसकी चालों को समझ नहीं पाए । “ नादान दोस्त से दाना दुश्मन बेहतर है “

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