Ahmad Rizvi

मुआविया बाग़ी

हुज़ूर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम ने हज़रत अम्मार इब्ने यासिर के बारे मे महत्वपूर्ण पेशीनगोई (बशारत) दी “ अम्मार इब्ने यासिर का कत्ल एक बाग़ी गिरोह करेगा और वह बाग़ी गिरोह जहन्नमी होगा “ यहाँ पर अम्मार इब्ने यासिर को कत्ल करने वाले को बताया जा रहा है कि कत्ल करने वाला गिरोह (समूह/group )पूरा गिरोह ही बाग़ी है गिरोह के किसी एक फर्द (व्यक्ति )को नहीं कहा गया और न उस अफ़राद को केवल कहा गया जो अम्मार का कत्ल करेगा बल्कि बशारत ये दी गयी है कि पूरा गिरोह बाग़ी है और जहन्नमी है । आइए देखते है हज़रत अम्मार इब्ने यासिर को कब कत्ल किया जाता है और अम्मार किसके साथ है । हज़रत अम्मार को सिफ़फीन नामक जगह पर होने वाली जंग जो हज़रत अली अलैहिस सलातों वससलाम और मुआविया के दरमियान हुई थी इस जंग मे हज़रत अम्मार को शहीद किया गया था और अम्मार मौला अली की ओर से लड़ रहे थे । पहला और महत्वपूर्ण सवाल है कि हुज़ूर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम की पेशीनगोई के अनुसार अम्मार को बाग़ी गिरोह कत्ल करेगा । हज़रत अली अलैहिस सलाम जब ज़ाहिरी मसनद खिलाफत पर नमूदार हुए तो आप अमीरुल मोमिनीन ने मुआविया इब्ने अबू सूफियान को शाम (सीरिया ) की हाकमीयत से बरतरफ़ कर दिया था जिसके बाद मुआविया इब्ने अबू सूफियान ने अमीरुल मोमिनीन के खिलाफ बग़ावत कर दी । इससे हुज़ूर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम की दी हुई बशारत पूरी हुई । हदीसे नबवी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम की हदीस हसन और हुसैन (सलामउल्लाह अलैह ) जवानान जन्नत के सरदार है सरदार जन्नतीयो के है नाऊज़ बिल्लाह जहन्नमीयो के नहीं हदीस मे बाग़ी गिरोह और उसके जहन्नमी होने की बशारत दी गयी है जिसने जन्नत के सरदारों को नहीं माना वो बाग़ी है सुलह करने से ही यह पता चलता है कि मुखालिफ है वरना मोहम्मद व आले मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम की एताअत की जाती है । सुलह और जंग हमेशा मुखालिफ से होती है। इस प्रकार सुलह इमाम हसन के ज़रिए भी मुआविया इब्ने अबू सूफियान बाग़ी और विरोधी है इसको साबित करता है । साथ मे सुलह हुदैबिया का जिक्र (उल्लेख ) करता चलूँ सुलह हुदैबिया कुफ़फार और अल्लाह के नबी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम के बीच हुआ था इस सुलह से कुफ़फार हैसियत मे कोई तबदीली (बदलाव ) नहीं आया । सुलह अपने आप मे काफिर से मोमिन मे नहीं बदलती । उसी प्रकार अल्लाह के रसूल ने जिस तरह मुआविया के साथ उसके पूरे गिरोह को बाग़ी होने की बशारत दी उससे सुलह इमाम हसन से उसका बाग़ी होना बदल नहीं जाता बल्कि उसकी बग़ावत जारी रही और मुआविया बाग़ी –ए-इस्लाम रहा । इसलिए उसे अमीर –ए-शाम या हाकिम-ए-शाम कहकर महिमा मंडन करने के स्थान पर नबी करीम मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम और मौला –ए-कायनात ने जिन अल्फ़ाज़ों को बयान किया है खतीब और ज़ाकिर को उसी पर ज़ोर देना चाहिए ऐसी मेरी गुजारिश है बाग़ी –ए-शाम , मुआविया बाग़ी । कुछ ऐसे कारनामे जो मुआविया की ज़िंदगी की खबासत मे किया :- 1. अमीरुल मोमिनीन जिनको अल्लाह के रसूल मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहों अलैह व आले वसल्लम ने कुल उम्मत के लिए गदीर खुम मे मन कुनतों मौला फहाज़ा अलीयुन मौला उसको मिंबर से गाली गलौज करना इस बात को साबित करता है कि मुआविया रसूल को अपना मौला मानता ही नहीं था । 2. हज़रत हुजर बिन अदी को कत्ल किया जो सहाबी ए रसूल है । 3. अम्मार इब्ने यासिर और न जाने कितने सहाबी को कत्ल किया । 4. मोहम्मद बिन अबू बक्र के साहब ज़ादे को गधे की खाल मे जिंदा चुनवा कर धूप मे डाल दिया और तड़पा तड़पा कर कत्ल किया । 5. इमाम हसन जो अहलेबैत रसूल है उनसे सुलह करना । 6. वक़्त के खलीफा से बग़ावत की । 7. उम्मुल मोमिनीन आयशा का कत्ल करना । 8. सुलह इमाम हसन के अनुसार yazeed को खलीफा नहीं बनाएगा अपने किए गए सुलह से मुंह फेरना वादे की मुखालफत करना जो मुनाफिक की निशानी है । मुआविया इब्ने अबू सूफियान की स्याह पन्नों का इतिहास (तारीख / history ) बहूत लंबी है ।

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