Ahmad Rizvi

झूठा प्रचार

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दुनिया भर मे प्रचार और झूठा प्रचार होता रहता है । इस झूठे प्रचार के नकारात्मक (मनफी) प्रभाव से इंसान का बड़ा नुकसान होता रहा है । अक्सर आपने सुना होगा कि एक समुदाय (तबका) अपने नबीयों के बारे मे सच को न जानते हुए झूठा प्रचार करना शुरू कर देते है । इसी तरह हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के खिलाफ जादूगर होने का प्रचार किया गया । आज के दौर की तरह उस समय संचार के माध्यम (means of communication) इतने तेज़ नहीं थे इसके बावजूद मौखिक (ज़बानी) प्रचार के द्वारा एक दूसरे तक बात फैलाते थे उस बात की सच्चाई को जाने बिना या तसदीक किए बिना सच मान लेते थे । अब अल्लाह सुभान व तआला के नबी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के जानशीन अमीर-उल –मोमीनीन के बारे मे जो प्रचार किया गया उसको देखे “ जब हज़रत अली इब्ने हज़रत अबू तालिब पर नमाज़ मे सजदे के दौरान सर पर ज़हर बूझी हुई तलवार से अब्दुर रहमान इब्ने मुलजिम के द्वारा हमला किया और उस ज़ख्म के दौरान हुई शहादत की खबर जब शाम आज का सीरिया मुल्क के लोगों (अवाम ) तक पहुंची तो लोग हैरान होकर पूछते थे कि

मानवाधिकार पर अमेरिका की टिप्पणी

अमेरिका किसी देश में मानवाधिकार का मुद्दा उठाता है तो मानवाधिकार के लिए या इनकी भलाई के लिए कभी नहीं उठाता उसके अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उस देश पर दबाव बनाने के लिए मानव अधिकार का मुद्दा उठाकर बिना हथियार के इस्तेमाल किए हुए मानव अधिकार नाम के अधिकार को ही हथियार बनाकर पेश कर देता है उदाहरण के लिए आतंकवादी राज्य इस्राएल के कत्लोगारत की भर्त्सना अमेरिकन ने कभी नहीं की और किसी भी पश्चिमी देश या एशियाई देश जो अमेरिका के इशारे पर काम करते हो जनमत का विरोध करता हो उसका अमेरिका ने समर्थन किया है. समर्थक है| सऊदी अरब जिसने खशोगी जैसे पत्रकार के वहशी कत्ल के बाद अमेरिकी डीलींंग के बाद मामला रफा-दफा हो गया | इराक का भूतपूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन जो अमेरिका के अच्छे मित्र थे और 1982 दुजैल नामक जगह में शियायों का कत्लेआम किया इस बात का अंदाजा लगाइए कहां सन 1982 और कहां सन 2003 लगभग 21 सालो तक अमेरिका ने उसके वीडियो को सुरक्षित रखा यही अमेरिका इराक़ के राष्ट्रपति का उस वक़्त का दोस्त था सोचने की बात है उस समय भी और उसके उसके खिलाफ अमेरिका सबूत इकट्ठा करता था और उसका ट्रायल किया गया है कुवैत पर आक्रमण का ट्रायल नहीं है ,हलबचा में ईरानी पर केमिकल हमले का ट्रायल नही, ट्रायल था दुजैल ताकि दोनो फ़िरको मे जमकर खून खराबा हो | अमेरिका का खुद का मानव अधिकार रिकॉर्ड इतना गंदा है कि दूसरे किसी मुल्क का ना होगा| कुछ उदाहरण में दे रहा हूं बाकि आप खुद जानकार है जापान पर परमाणु बम का गिराना, अफगानिस्तान में बकौल जनरल मुशर्रफ़ अमेरिका ने परमाणु बम को छोड़कर बाकी सारे बम गिराए है | इराक में अमेरिका ने depicted uranium bomb तक गिराया है वियतनाम में लाखों बेगुनाहों इन्सानो का कत्ल किया| पनामा में लाखो बेगुनाह इंसानों को खत्म किया सीरिया और इराक में आईएसआईएस के रूप में पश्चिमी देशों की फौज और आतंकवादियों का समूह खड़ा किया | मिश्र मे मोहम्मद मुर्सी की चुनी हुई सरकार को पलटू आया और फौज को समर्थन दिया ! अब अमेरिका ने भारत पर जो टिप्पणी किया है कि हम सब देख रहे हैं भारत में पुलिस ,जेलो और अधिकारियों द्वारा किस तरह मानव अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है और हम निगरानी कर रहे हैं सवाल यह पैदा होता है कि दुनिया में अमेरिक ने यह मानव अधिकार का उल्लंघन पहली बार होते हुए देखा है| नहीं, 2002 में गुजरात में मुसलमानों का कत्लेआम ,म्यानमार मे रोहिन्ग्या मुसलमानों का कत्लेआम, जम्मु और कश्मीर मे फ़ारुख डार को सैनिको द्वारा सैनिक जीप मे बांध कर human shield की तरह फ़ौज ने इस्तेमाल किया था और उसकी जान से सरेआम खिलवाड़ किया था उसको भी अमेरिका ने देखा था बहुत सारे मानवाधिकार उल्लंघन को अमेरिका देखता है उनसे अमेरिका हैं कोई लेना देना नहीं होता है अमेरिका अपने हितों के लिए किसी पर टिप्पणी करता है! भारत के मानवाधिकार की खराब होती स्थिति से अमेरिकी हित कैसे पूरे किये जाये उस पर अमेरिका की निगाह है! आने वाला समय बता देगा कि अमेरिका का कौन सा हित पुरा किया जा रहा है या अमेरिकी हित के पूरा न होने की दशा मे अमेरिका मानवाधिकार उल्लंघन का ढिढोंरा पीटना शुरू कर देगा दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करने लगेगा| अल्पसंख्यक वर्ग को अमेरिका के किसी मुद्दे को आगे बढ़ाने पर उनका समर्थन बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योंकि अमेरिका अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए मानव अधिकार का मुद्दा नहीं उठाता है बल्कि मानव अधिकार का मुद्दा सिर्फ हथियार के तौर पर अमेरिकी हितों की रक्षा करने के लिए करता है|

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