Ahmad Rizvi

हज़रत अबूज़र गफारी

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क़ुरान मजीद मे प्रत्येक खुश्क और तर चीज़ का उल्लेख (ज़िक्र) है । अर्थात क़ुरान मजीद मे हर चीज़ का उल्लेख है । इस पर अल्लाह सुभान व तआला के नबी मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के साथियों के बारे मे जानकारी क़ुरान मजीद से करना चाहा है इस सम्बन्ध मे सूरे फतह की आयत संख्या 39 के कुछ अंश का उल्लेख करता हूँ मोहम्मद (सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम) अल्लाह के रसूल है और जो लोग उन के साथ है काफिरों पर बड़े सख्त और आपस मे बड़े रहम दिल है । इस आयत मे दिये गये अंशों के आधार पर आज सहाबी-ए-रसूल हज़रत अबूज़र गफारी और हज़रत उस्मान मे होने वाले मतभेद के विषय पर रोशनी डालना चाहेंगे और इस पसमंजर मे कुरान मजीद की उपरोक्त आयत को मद्देनज़र रखते हुवे दोनों सहाबीयों को समझने का प्रयास करते है और पाठक (पढ़ने वाले) खुद नतीजे पर पहुंचे – आइये गौर करते है :- 1. मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम अल्लाह के रसूल है । 2. जो लोग मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के साथ है वो काफिरों पर बड़े सख्त है । 3. जो लोग मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के साथ है वो आपस मे बड़े रहम दिल है । अबूज़र ग...

संस्कार विवाह और मुस्लिम निकाह

अक्सर दोस्तों और दुश््मनों के बीच मैं बैठकर वार्तालाप होती रहती है जहां लोग अल्पसंख्यक में विशेेषकर मुसलमान मुसलमान को देखते हैं तो जैसे उनके मन में कटाक्ष करने की या कॉमेट्स करने कीइच्छा प्रबल होतीी है मेरीी भी स्थिति अच्छी नहीं जैसे 32 दातों के बीच एक जवान हो वैसे 32 दांत का कामही चवा डालना है लेकिन जीभ न हो तो इस चबाने का कोई स्वाद/टेस्ट भी नहीं ऐसे ही यहां पर मुसलमान हैं जो टेस्टी अस्वास्थ्य भर देता है अपना धर्म या मजहब है उसके अपने विचार है अपनी आस्था आस्थाा है या बिलीव है मगर रह रह कर लोगों को मसखरापन या मजाक उद्देेेेेलित करता रहता है । अब मैं बैठा हुआ था और एक सज्जन ने सवाल किया, मियां आपके यहाँ शादियां तो एगरीमेन्ट है जब चाहो छोड़ दो, हम लोगो के यहाँ विवाह जो होते हैं वह संस्कार होते हैं जन्म जन्म का साथ होता है। उन सज्जन पुरुष जो काफी पढे लिखे साथी अधिवक्ता है उनसे मैने जवाब में कहा "इस्लाम धर्म "को आप माने या न माने मगर अनुसरण आपको करना ही पडता हैं। उनका सवाल था कैसे। आप का विवाह संस्कार है जन्म जन्मान्तर का साथ है उसमे तलाक या विवाह विच्छेद की कोई गुंजाइश नहीं मगर आपने इस्लाम धर्म से तलाक को अपनाया की नहीं अपनाया। अगर आप हमारी बात न माने तो विवाह विच्छेद एक्ट 1869को और देख सकते हैं चलो यह बात 1869 की है हम लोग अंग्रेजो़ के गुलाम थे ज़बरदस्ती कानून को थोप दिया गया होगा। आज़ादी के बाद, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 को शामिल किया गया ताकि विवाह का विच्छेद किया जा सके। अब बताइये कि आपने मुस्लिम एग्रीमेन्ट वाले विवाह को अपनाया या नहीं अपनाया। कयोंकि संस्कारी विवाह में तलाक का कोई संकल्पना ही नहीं था।

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