विदअत क्या है इस्लाम मे विदअत ऐसे कार्य को करना है जो हुक्म अल्लाह सुभान व तआला व रसूल उल्लाह मोहम्मद मुस्तफा सलल्लाहों अलैह व आले वसल्लम ने न किया हो । ज़ाहिल (अज्ञानी) मोलवी ने “रोने को विदअत” कहना शुरू किया वो इसलिए कि आले मोहम्मद इमाम हुसैन और उनके कराबतदारों, मेहमान और दोस्तों को कर्बला मे शहीद कर दिया गया । आले मोहम्मद से मोहब्बत करने वाले लोग अपनी मोहब्बत मे उन पर होने वाले ज़ुल्म पर रोते है । यज़ीद और उसके बाप मुआविया लानत उल्लाह अलैह से लगाव रखने वाले और उनसे मोहब्बत करने वाले, हुसैनियों से नफरत करते है और रोने को विदअत कहते है । “रोने को विदअत” कहने वाले उस वक़्त खामोश हो गये जब हज़रत आदम के रोने का जिक्र आया, जब हज़रत याकूब के रोने का ज़िक्र आया, और अल्लाह के नबी मोहम्मद मुस्तफा सलल्लाहों अलैह व आले वसल्लम के रोने का ज़िक्र आया वह भी तब जब हज़रत हमज़ा की शहादत हुई और कर्बला मे इमाम हुसैन की शहादत को पहले से बता देना और गिरया (रोना) करना साबित कर रहा था कि रोना विदअत नहीं बल्कि रोना “सुन्नत-ए- नबवी” है । विदअत अब तक कहाँ कहाँ हुआ है इसको बताने का कलील (संक्षिप्त) को...