
. मजमाउल बयान की टिप्पणी में यह बताया गया है कि प्यारे पैगंबर (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि;
जो कोई भी इस सूरह की तिलाबत करता है, उसे पूरे कुरान के दो तिहाई (2/3) पढ़ने का सवाब मिलेगा, और उसे दुनिया के तमाम मोमिन मर्दों और औरतों को जो सदका देने पर जो सवाब मिलता है उसके बराबर, इस सूरह फातिहा की तिलावत करने पर सवाब मिलेगा।
2. प्यारे पैगंबर (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने एक बार जाबिर बिन अब्दुल्ला अंसारी से पूछा, "क्या मुझे आपको एक सूरह सिखाना चाहिए जिसकी पूरे कुरान में कोई अन्य बराबरी नहीं है?"
जाबिर ने जबाब दिया, "हाँ, और अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम), मेरे बालिदैन आप पर फिदया दे सकते हैं।"
तो अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने उन्हें सूरह अल-फातिहा सिखाया। फिर अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने पूछा, "जाबिर, क्या मैं आपको इस सूरह के बारे में कुछ बताऊं?"
जाबिर ने जबाब दिया, "हाँ, और अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम), मेरे बालिदैन आप पर फिदया दे सकते हैं।"
अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने कहा, "यह (सूरह अल-फातिहा) मौत को छोड़कर हर बीमारी का इलाज है।"
3. सूरह फातिहा की नमाज़ में बहुत बड़ी फ़ज़ीलत है, अगर सूरह फातिहा नही पढ़ी जाए तो नमाज़ अधूरी रहती है।
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