हज़रत अबूज़र गफारी
क़ुरान मजीद मे प्रत्येक खुश्क और तर चीज़ का उल्लेख (ज़िक्र) है । अर्थात क़ुरान मजीद मे हर चीज़ का उल्लेख है । इस पर अल्लाह सुभान व तआला के नबी मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के साथियों के बारे मे जानकारी क़ुरान मजीद से करना चाहा है इस सम्बन्ध मे सूरे फतह की आयत संख्या 39 के कुछ अंश का उल्लेख करता हूँ मोहम्मद (सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम) अल्लाह के रसूल है और जो लोग उन के साथ है काफिरों पर बड़े सख्त और आपस मे बड़े रहम दिल है । इस आयत मे दिये गये अंशों के आधार पर आज सहाबी-ए-रसूल हज़रत अबूज़र गफारी और हज़रत उस्मान मे होने वाले मतभेद के विषय पर रोशनी डालना चाहेंगे और इस पसमंजर मे कुरान मजीद की उपरोक्त आयत को मद्देनज़र रखते हुवे दोनों सहाबीयों को समझने का प्रयास करते है और पाठक (पढ़ने वाले) खुद नतीजे पर पहुंचे – आइये गौर करते है :-
1. मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम अल्लाह के रसूल है ।
2. जो लोग मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के साथ है वो काफिरों पर बड़े सख्त है ।
3. जो लोग मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम के साथ है वो आपस मे बड़े रहम दिल है ।
अबूज़र गफारी का नाम जनज़ब पुत्र जनादा था । रबज़ा के रहने वाले थे जो मदीना की पूरब की ओर एक छोटा गाँव था । जब बेशते रसूल का प्रचार प्रसार सुना तो वो मक्का आये और पूछताछ करने के बाद पैगंबर की खिदमत (सेवा) मे पहुँच कर इस्लाम को स्वीकार किया जिस पर कुरैश के काफिरों ने उन्हे तरह तरह का कष्ट दिया । प्रताड़ना पर प्रताड़ना दिया गया मगर आप के कदम डगमगाये नहीं आप इस्लाम लाने वालों मे तीसरे या चौथे या पाँचवे व्यक्ति है अकरम सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम ने फरमाया कि अबूज़र की उम्मती शबीह ईसा इब्ने मरियम की मिसाल है ।
आप हज़रत उमर के दौरे हुकूमत मे सीरिया चले गये और हज़रत उस्मान के ज़माने खिलाफत मे भी वहीं रहते थे । ज़िन्दगी के रात दिन हिदायत व तबलीग ( मार्गदर्शन और प्रचार प्रसार ) के कर्तव्य को पूरा किया । अहले बैअत रसूल की अज़मत से पहचान कराने और हक़ की राह की तरफ रहनुमाई करने गुज़रते थे । चुनानचे सीरिया और जबल आमिल (आमिल पहाड़) मे दीने हक़ का जो प्रभाव पाये जाते है वो आप ही का प्रचार प्रसार का परिणाम (नतीजा) है । मुआविया को उनका यह ढंग पसन्द न थी इसलिए वो अबूज़र के खुल्लम खुल्ला आलोचना करने और उस्मान की दौलत को इकट्ठा करने और बे राह रवि के प्रचार प्रसार करने से बेहद बेजार थे मगर कुछ बनाये न बनती थी आखिर उसने उस्मान को लिखा कि अगर अबूज़र कुछ समय और यहाँ रहे तो इन चारों तरफ के लोगों को उस्मान से विमुख कर देंगे लिहाज़ा अबूज़र को नियंत्रित करना चाहिए जिस पर उस्मान ने जवाब दिया कि अबूज़र को शतरे बे पालान (बिना कपड़े और बिना पालान के जो ऊंटों पर रखा जाता है जिस पर व्यक्ति के बैठने पर तकलीफ नहीं होती) पर सवार करके मदीना भेज दिया जाये । इसलिए इस हुक्म का पालन किया गया और अबूज़र को मदीना भेज दिया गया । जब अबूज़र मदीना पहुंचे तो यहाँ भी हक़ और सच्चाई का प्रचार प्रसार करना आरम्भ कर दिया । मुसलमानों को पैगमबर सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम का अहद याद दिलाते – रोम के बादशाह केसर (जिन्हे ceaser भी कहते है) और फारस के बादशाह कसरा की तरह खलीफा के शान व शौकत के परदर्शन (दिखावा) का विरोध करते थे उस्मान अबूज़र की ज़बान बंदी की युक्ति (तदबीरे) करते एक दिन बुलाकर कहा कि मैंने सुना है कि तुम कहते फिरते हो कि पैगम्बर (सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम) ने फरमाया था कि :-
जब बनी उमैय्या की संख्या 30 तक पहुँच जायेगी तो वो अल्लाह के शहरों को अपनी जागीर और अल्लाह के बन्दो को अपना गुलाम और उसके दीन को फरेबकारी का ज़रिया (माध्यम) करार दे लेंगे ।
अबूज़र ने जवाब मे कहा कि बेशक मैंने पैगम्बरे इस्लाम (सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम) को ये फरमाते सुना था । उस्मान ने कहा कि तुम झूठ कहते हो और पास बैठने वालों से कहा कि तुम मे से किसी ने इस हदीस को सुना है सबने इंकार किया जिस पर हज़रत अबूज़र ने फरमाया कि अमीरूल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब से पूछा जाये । इसलिए हज़रत अली को बुलाकर पूछा गया तो आप ने फरमाया कि हाँ यह सही है और अबूज़र सच कहते है उस्मान ने कहा कि आप किस आधार पर इस हदीस की सेहत की गवाही देते है हज़रत ने फरमाया कि मैंने पैगम्बर (सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम) को फरमाते सुना है कि ;-
“ किसी बोलने वाले पर आसमान ने साया नहीं डाला और ज़मीन ने उसे नहीं उठाया जो अबूज़र से ज्यादा रास्तगो (सही बोलने वाला) हो । “
अब उस्मान क्या कह सकते थे अगर झूठलाते तो पैगम्बर की तकज़ीब लाज़िम आती थी । पेंचों ताब खाकर रह गये और इस बात को रद्द नहीं कर सके और हज़रत अबूज़र ने सरमायापरस्ती (capitalism) के खिलाफ खुल्लम खुल्ला कहना आरम्भ कर दिया और उस्मान को देखते तो इस आयत की तिलावत (पढ़ना) फरमाते – सूरे तौबा आयत संख्या 34 व 35 के अंश :-
“ वो लोग जो सोना और चांदी इकट्ठा करते रहते है और उसे अल्लाह की राह मे खर्च नहीं करते उन को दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो जिस दिन कि उन का इकट्ठा किया हुआ सोना व चांदी दोजख की आग मे तपाया जायेगा और उससे उनकी पेशानीयां पहलू पीठ दागी जायेगी और उन से कहा जायेगा कि ये वही है जिसे तुमने अपने लिये भंडार बना कर रखा था तो अब उस भंडार करने का मज़ा चखो । “
उस्मान ने माल और दौलत का लालच दिया मगर अबूज़र को सुनहरे जाल मे न जकड़ सके । तशद्दुद (मारना पीटना ) व सख्ती से भी काम लिया मगर उन की जबाने हक़ कहने को बन्द न कर सके आखिर उन्हे मदीना छोड़ देने और रबज़ा की ओर चले जाने का हुक्म दिया और रसूल उल्लाह सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम ने मरवान बिन हकम और उसके बाप हकम बिन अल असस को मदीना से निष्काषित किया था (इन दोनों को नबी करीम मोहम्मद मुस्तफा सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम ने इसलिए शहर बदर किया था कि ये दोनों इस्लाम को गालियां दे रहे थे और मुसलमानों को नुकसान पहुंचा रहे थे हकम उस्मान का चचा था और मरवान उस्मान का चचाज़ाद भाई था) उनको नियुक्त किया कि मरवान उन्हे मदीना से बाहर निकाल दे और उसके साथ यह सख्त आदेश भी दिया कि कोई अबूज़र से बात न करे और न उन्हे अलविदा कहे, मगर अमीरूल मोमिनीन, इमाम हसन, इमाम हुसैन, अकील , अब्दुल्लाह पुत्र जाफ़र और अम्मार यासिर ने इस आदेश की परवाह न की और उन्हे विदा करने के लिए साथ हो लिए और इसी विदाई के मौके पर हज़रत अली ने उनसे यह कलमात (वाक्य) फरमाये –
रबज़ा मे हज़रत अबूज़र की ज़िन्दगी बड़े कष्टों मे गुज़री यहीं पर आप के बेटे ज़रा और पत्नी की म्रत्यु हो गई जो भेड़ बकरीयां जीवन यापन के लिये पाल रखी थी वो भी हलाक हो गई। औलाद मे सिर्फ एक पुत्री रह गयी थी सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम जो फाकों और दुखों मे बराबर की हिस्सेदार थी जब सरो सामान ज़िन्दगी खत्म हो गया और फाकों पर फाके होने लगे तो उसने हज़रत अबूज़र से निवेदन किया कि बाबा ये ज़िन्दगी के दिन किस तरह कटेंगे कहीं आना जाना चाहिए और रिज़्क की तलाश (खोज) करना चाहिए । जिस पर हज़रत अबूज़र उसे साथ लेकर सहरा (रेगिस्तान) की तरफ निकल खड़े हुए। मगर घास पात भी उपलब्ध न आ सका । आखिर थक कर एक जगह बैठ गये और रेत इकट्ठा करके उस का ढेर बनाया और उस पर सर रख कर लेट गये इसी आलम मे साँसे उखड़ गई पुतलियाँ ऊपर चढ़ गई। नज़ा (मौत आने से पहले की हालत को नज़ा कहते है) की तारी हो गई जब अबूज़र की बेटी ने यह हालत देखी तो घबरा कर कहने लगी कि बाबा अगर आप ने इस लकोंदक रेगिस्तान मे मर गये तो मै अकेली कैसे दफन व कफन का सामान करूंगी। आप ने फरमाया कि बेटी घबराओ नहीं पैगम्बर अकरम सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम मुझ से बता गये थे कि ऐ अबूज़र ! तुम आलमे गुरबत मे मरोगे और कुछ इराक़ी तुम्हारी कफन दफन करेंगे तुम मेरे मरने के बाद एक चादर मेरे ऊपर डाल देना और सरे राह जा बैठना और जब उधर से काफिला गुज़रे तो उस से कहना कि पैगंबर के सहाबी अबूज़र ने इंतेकाल किया है । चुनांचे उनकी मौत के बाद सरे राह जाकर बैठ गई । कुछ देर के बाद एक काफिला आया जिसमे हिलाल पुत्र मालिक मजनी, अहनफ पुत्र कैस तमीमी, सअसआ पुत्र सोमान अबदी ,असवद पुत्र कैस तमीमी और मालिक पुत्र हारिस अस्तर थे जब उन्होंने हज़रत अबूज़र की मौत की खबर सुनी तो उस बेकसी की मौत पर तड़प उठे । सवारीयां रोक ली और उन का कफन दफन के लिये सफर (यात्रा) को स्थगित किया । मालिक अस्तर ने एक हिल्ला कफन के लिये दिया जिसकी कीमत 4000 दिरहम थी और कफन दफन को अंजाम देकर रुखसत हुए ये घटना 8 ज़िलहिज़्जा 32 हिजरी का है ।
निष्कर्ष:
1. एक सहाबी दूसरे सहाबी को मार पीट करा रहा है उसको मदीना से निकाला जा रहा है ,निकाले जाने मे मरवान का इस्तेमाल किया गया मरवान और उसका बाप हरब वो है जिसको रिसालत माब ने अपने वक्त मे मदीना से बाहर किया था यहाँ रिसालत माब का विरोध किया गया मरवान को मदीना बुलाया गया और उसको मुसलमानों के बैतुल माल को दिया गया ।
2. कुरान मजीद की आयत के अनुसार मोहम्मद (सललल्लाहो अलैह व आले वसल्लम) अल्लाह के रसूल है और जो लोग उन के साथ है काफिरों पर बड़े सख्त और आपस मे बड़े रहम दिल है यहाँ तो बिल्कुल विपरीत दिख रहा है मरवान जैसे काफिर पर रहम दिली की जा रही है और सहाबी रसूल अबूज़र गफारी बड़े सख्त है इससे इन पर सवालिया निशान लग रहा है कि यह लोग अल्लाह के नबी के साथ है या नहीं कुरान मजीद की आयत के अनुसार नहीं है ।
3. सहाबी सहाबी की दुहाई देने वाले इस घटना पर खामोश हो जाते है दोनों सहाबी है किस को हक़- ब- जानिब कहेंगे ।
अब आप खुद किसी नतीजे पर पहुँच सकते है जो लोगों को बताया नहीं जाता है और तथ्यों को छिपाया जाता है ।
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