Ahmad Rizvi

जन्नतुल बक़ी

रसूल उल्लाह सल्लालाहों अलैह व आले वसल्लम ने जब ग़दीर में हज़रत अली को मौला का ऐलान किया कि जिसका मौला मैं उसके मौला अली इस ऐलान के बाद नबी करीम को ज़हर दे दिया गया उसके बाद यजीदीयों ने हज़रत अली को मस्जिद में सजदे के दौरान क़त्ल कर दिया यजीदीयों ने हज़रत अली के बेटे इमाम हसन को ज़हर दिलवाकर क़त्ल करा दिया आगे हज़रत अली के बेटे इमाम हुसैन और उनके समस्त परिवार, दोस्त समेत सबको क़त्ल करा दिया 1932 में एक बार फ़िर मुआविया और यजीद की औलाद को अरब की सत्ता ब्रिटिशों के रहमो करम से मिल गई जो सबसे पहला काम मुआविया और यजीद की औलादो और उनके चाहने वालो ने मोहम्मद मुस्तफा सल्लालाहों अलैह व आले मोहम्मद से दुश्मनी को अंजाम देते हुए अल्लाह के नबी की बेटी के मकबरा को ध्वस्त कर दिया सवाल उठता है कि 632 से बना हुआ 1932 तक कायम रहा अब तक वहां इस्लाम नहीं था ऐसा यजीदीयों का मानना है अब यजीदी अल्लाह के नबी के रोजे को तोड़ने की साज़िश भी यजीदी रचते आ रहे है रसूल उल्लाह सल्लालाहों अलैह व आले वसल्लम ने जब ग़दीर में हज़रत अली को मौला का ऐलान किया कि जिसका मौला मैं उसके मौला अली इस ऐलान के बाद नबी करीम को ज़हर दे दि...

उलूल इल्म

उलूल इल्म शहीदउल्लाहु अन्नहु ला इलाहा इल्ला हुआ व मलायकतु व उलूल इल्म क़ायमन बिल किस्त ला इलाहा इल्ला हुवल अज़ीज़ुल हक़ीम (सूरे आले इमरान आयत नं.18) “ अल्लाह खुद गवाह है कि नहीं है कोई इलाहा (पूज्य) सिवाय उसके व मलाएका (फ़रिश्ते) व एक के बाद एक कायम होने वाले उलूल इल्म (साहिबाने इल्म) गवाही देते है नहीं है कोई इलाहा सिवाय उस अज़ीज़ुल हक़ीम के “ अब चर्चा का विषय (मौज़ू) उलूल इल्म है । इल्म (ज्ञान) नबीयों की मीरास (legacy) है। सूरे कहफ (आयत नं. 60 से 82) और याद करो जबकि मूसा ने अपने युवक सेवक से कहा : जब तक कि मै दो दरियाओ के संगम पर न पहुँच जाऊं हटने का नहीं, अन्यथा मै एक लम्बे समय तक चलता रहूँगा । तो जब वे संगम पर पहुंचे दोनों (दरियाओ) के बीच, तो वे अपनी मछली भूल गये, और उस (मछली) ने दरिया मे की तरह अपना रास्ता बना लिया । फिर जब वे आगे चले, तो (मूसा ने) अपने युवक सेवक से कहा : हमारे लिए खाना लाओ इस सफर से हमको बहुत तकलीफ हो गई है । उसने कहा : भला आप ने देखा कि जब हमने पत्थर के पास आराम क्या था तो मै मछली वहीं भूल गया और मुझे आप से उसका ज़िक्र करना शैतान ने भूला दिया और उस ने अजब तरह से दरिया मे अपना रास्ता लिया । मूसा ने कहा : यही तो (वो मुकाम) है जिसे हम तलाश करते थे तो वो अपने पाँवों के निशान देखते देखते लौट गये । तो उन्होंने हमारे बंदों मे से एक बन्दा देखा जिसको हमने अपने यहाँ से रहमत यानी नबूवत या नेअमत विलायत दी थी और अपने यहाँ से इल्म बख्शा था । मूसा ने उससे कहा : (जिनका नाम हज़रत खिज़्र था ) कहा कि जो इल्म आपको सिखाया गया है अगर आप उसमे से मुझे कुछ भलाई सीखाए तो मै आपके साथ रहूं । उसने (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) कहा : आप मेरे साथ सब्र न कर सकेंगे और जिस बात की तुम्हें खबर ही नहीं उस पर सब्र कर भी कैसे सकते हो । मूसा ने कहा ; अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे साबिर पाएंगे और मै आपके अम्र (कार्य) के खिलाफ नहीं करूंगा । उसने (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) कहा : अच्छा, यदि आप मेरे साथ रहना चाहो तो मुझ से कोई बात न पूछना जब तक मै खुद उसका ज़िक्र तुमसे न करूँ । अब दोंनो चल पड़े यहाँ तक कि जब कश्ती (नौका) मे सवार हुवे तो (हज़रत खिज़्र ने ) कश्ती को फाड़ डाला (मूसा ने कहा ) क्या आपने उसको इसलिए फाड़ा है कि सवारों को गर्क कर दे ये तो आपने बड़ी अजीब बात की । उसने (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) कहा : क्या मैंने नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सब्र न कर सकोगे । मूसा ने कहा : जो भूल मुझ से हुई उस पर मोखिज़ा (पकड़) न कीजिए और मेरे मामले मे मुझ पर सख्ती न कीजिए । फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि वे एक लड़के से मिले, तो (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) ने उसे कत्ल कर दिया । मूसा ने कहा : क्या आपने एक बेगुनाह शख्स को बिना क़सास के मार डाला । ये तो आपने बुरी बात की है । उसने (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) कहा : क्या मैंने आप से कहा नहीं था कि आप मेरे साथ सब्र नहीं कर सकेंगे । मूसा ने कहा : इसके बाद फिर कोई बात पूछे (यानी एतराज करे) तो मुझे अपने साथ न रखिएगा कि आप मेरी तरफ से अज्र को पहुँच चुके है । फिर दोनों चले, यहाँ तक कि एक गाँववालों के पास पहुंचे और उन से खाना तलब किया उन्होंने उनकी ज़ियाफ़त (मेहमानदारी) करने से इन्कार किया फिर उन्होंने वहां एक दीवार देखी जो झूक कर गिरा चाहती थी तो (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) ने उसको सीधा कर दिया । मूसा ने कहा यदि आप चाहते तो उनसे इसका मुआवजा लेते । उसने (हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम ) कहा : यह मेरे और आप के बीच जुदाई है ! मगर जिन बातों पर तुम सब्र न कर सके मै उन का तुम्हें भेद बताये देता हूँ कश्ती थी गरीब लोगों की थी जो दरिया मे मेहनत करके यानी कश्तीयां चला कर गुज़ारा करते थे और उनके सामने एक बादशाह था जो हर एक कश्ती को ज़बरदस्ती छीन लेता था तो मैंने चाहा कि उसे ऐबदार कर दूँ ताकि वो उसे गसब न कर सके । और यह जो लड़का था उसके माँ बाप दोनों मोमिन थे हमे अन्देशा हो रहा कि वो बड़ा होकर बद किरदार होगा कहीं उनको सरकशी और कुफ्र मे न फंसा दे । तो हमने चाहा कि उसका रब उसकी जगह उनको बच्चा अता करे जो पाक तीनती (नियत साबित) मे बेहतर और मोहब्बत मे ज़्यादा करीब हो । और रही यह दीवार, तो यह दो यतीम (अनाथ) लड़कों की थी जो इस शहर मे रहते है, और उसके नीचे उनका खज़ाना मदफ़ून (दफन) है और उनका बाप एक नेक आदमी था तो आप के रब ने चाहा कि वे (लड़के) अपनी जवानी को पहुंच जायें और अपना खज़ाना निकाल ले । यह तुम्हारे रब की मेहरबानी है और ये काम मैंने अपनी तरफ से नहीं किये यह उन बातों की हकीकत है जिन पर तुम सब्र नहीं कर सके। हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम उन राज़ों को जानते थे जिसको हज़रत मूसा नहीं जानते थे एक जलील-उल-कद्र पैगंबर को वो इल्म नहीं था जो हज़रत खिज़्र अलैहिस सलाम को था । उलूल इल्म के बारे मे जानने के साथ हदीस-ए-नबवी को जानना ज़रूरी है “ अना मदीनतुल इल्म व अलीयुन बाबहा” मै (रसूल उल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम ) इल्म का शहर हूँ और अली उसके बाब (दरवाज़ा) है। इल्म का शहर “शहर के अन्दर ज़िन्दगी की हर चीज़ मौजूद होती है। “इल्म का शहर” इसका अर्थ हर तरह का इल्म “ “ व अलीयुन बाबहा” और अली उसके दरवाज़ा है। हज़रत अली ने जब तक रसूल उल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम ज़िन्दा रहे तब तक नबी करीम के आगे कोई इल्म का इज़हार नहीं किया और अगर किया तो हुक्म रसूल से । बाद वफ़ात रसूल उल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम आपने फरमाया “पूछने वालों जो चाहो पूछ लो इससे पहले कि मै तुम्हारे बीच न रहूं” मौला का इरशाद “ अगर मुझे वक्त मिलता तो मै पानी से रोशनी पैदा कर देता” जिन्हे फादर ऑफ साइंस कहा जाता है जाबिर (जिन्हे अंग्रेजी मे gabir लिखा जाता है ) उसने इमाम जाफ़र सादिक़ के बारे मे बताया कि इमाम जाफ़र सादिक़ इल्म का समंदर है और मैंने (जाबिर) समुद्र के किनारे कंकड़ों को जितना इकट्ठा कर पाया उतना किया । लगातार उलूल इल्म कायम है जैसा क़ुरान मजीद मे ज़िक्र है । उलूल इल्म हज़रत रसूल उल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आले वसल्लम 1. इमाम हज़रत अली अलैहिस सलाम 2. इमाम हज़रत हसन मुजतबा अलैहिस सलाम 3. इमाम हज़रत हुसैन अलैहिस सलाम 4. इमाम हज़रत अली बिन हुसैन अलैहिस सलाम 5. इमाम हज़रत मोहम्मद बाक़िर अलैहिस सलाम 6. इमाम हज़रत जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम 7. इमाम हज़रत मूसा काज़िम अलैहिस सलाम 8. इमाम हज़रत अली रज़ा अलैहिस सलाम 9. इमाम हज़रत मोहम्मद तकी अलैहिस सलाम 10. इमाम हज़रत अली नक़ी अलैहिस सलाम 11. इमाम हज़रत हसन अस्करी अलैहिस सलाम 12. इमाम हज़रत मेहंदी आखिरूज़ ज़मां अलैहिस सलाम दुनिया ने हर लक़ब को चुराने का प्रयास किया है लेकिन कोई उलूल इल्म नहीं बना। उलूल इल्म का दावा उन्होंने किया जो हकीकत मे इसके हकदार थे और जिन्होंने दुनिया के इल्म के साथ छिपी हुई बातों को भी बता दिया । “उलूल इल्म का ज़िक्र इसलिए करना पड़ा कि उलूल अम्र का ज़िक्र किया जाता है लेकिन क़ुरान मजीद मे उलूल अम्र के साथ उलूल इल्म का भी ज़िक्र है ।

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