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Showing posts from July, 2024

Ahmad Rizvi

राजनिति और धोखा

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राजनिति को समझने और उसमे बेवकूफ़ लोगो को किस तरह धोखा दिया जाता है और कम समझ लोगो की भावनाओ /जज़बातो के साथ खेला जाता है 5 अगस्त 2019 को जब जम्मु और कश्मीर से सविन्धान के अनुच्छेद 370 को खत्म किया उस समय आपको याद होगा कि उन्होंने 9 जनवरी 2019 को विरोध में भारतीय नौकरशाही से अपना इस्तीफा दे दिया, जिसमें अन्य बातों के अलावा कश्मीर में "निरंतर हत्याओं" का हवाला दिया गया था, जिसे कथित तौर पर केंद्र सरकार द्वारा "कभी स्वीकार नहीं किया गया" और बाद में उन्होंने इसे वापस भी ले लिया।जीवन की शुरुआत की। इसके तुरंत बाद, 16 मार्च 2019 को, उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (JKPM) की घोषणा की। उन्होंने 10 अगस्त 2020 को राजनीति छोड़ दी और JKPM छोड़ दी। अप्रैल 2022 में मोदी सरकार ने उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में बहाल कर दिया। अगस्त 2022 में उन्हें केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय में उप सचिव के पद पर तैनात किया गया। अब इसमे गौर करने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग ने रजनितिग पार्टी को गठन करने दिया उसे महिनो संचालित करने दिया वो भी IAS होते हुवे क्योंकि

CAA, NRC,NPR और मुसलमानों का भयभीत होना!

CAA, NRC,NPR और मुसलमानों का भयभीत होना! CAA, NRC, NPR से मुसलमान भयभीत क्यों है सबसे पहले हम CAA को जानते है CITIZENSHIP AMENMENT ACT नागरिकता संशोधन अधिनियम NRC= NATIONAL REGISTER OF CITIZEN नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (पंजिका) NPR = NATIONAL POPULATION REGISTER राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर आज CAA, NRC, और NPR पर चर्चा करेंगे इसके साथ मुस्लिम क्यों भयभीत है इस पर भी चर्चा करेंगे । सन 1947 मे अंग्रेजों के द्वारा लन्दन मे पारित कानून INDIAN PARTITION ACT 1947 (भारतीय विभाजन अधिनियम 1947) किया गया जिसमे दो आज़ाद देशों भारत और पाकिस्तान का निर्माण किया गया इसके साथ दोनों देशों मे PRINCELY STATE जिसे देशी रियासते थी जो आज़ाद थी और उनमे राजा, नवाब, निज़ाम आदि राज्य करते थे । सन 1955 मे नागरिकता अधिनियम (CITIZENSHIP ACT 1955 ) पारित किया गया । जिसमे नागरिकता प्राप्त करने के प्रकार दिए गए है । जन्म के द्वारा नागरिकता : 26 जनवरी 1950 से पहले या बाद मे भारत मे जन्म लेने वाले कोई व्यक्ति भारत के नागरिक है यह जन्मजात नागरिकता है । अवजनन द्वारा नागरिकता : भारत के बाहर भारतीय माता पिता से जन्मे ल

इखतेलाफ़

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अपने आखिरी समय मे जब अहमद मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा (सललल्लाहों अलैह व आले वसल्लम) ने किसी सहाबी से कागज़ और कलम लाने के लिए कहा “ लाओ मै तुम्हें लिखकर दे दूँ ताकि तुम्हारे बीच कोई इखतेलाफ़ न रहे “ कागज़ कलम न दिया एक अलग बात है लेकिन रिसालत माब अहमद मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा (सललल्लाहों अलैह व आले वसल्लम) ने रहती दुनिया तक यह संदेश दे दिया कि अल्लाह के नबी अहमद मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा (सललल्लाहों अलैह व आले वसल्लम) ने कागज़ और कलम को सहाबी से तलब किया साथ मे यह भी कहा कि तुम्हारे बीच कोई इखतेलाफ़ न रहे । इसका मतलब अल्लाह के नबी अहमद मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा (सललल्लाहों अलैह व आले वसल्लम) अपनी उम्मत मे इखतेलाफ़ नहीं चाहते थे कागज़ और कलम का न दिया जाना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि असल मंशा क्या है दूसरी बात यह है कि जिसने कागज और कलम न दिया वो भी अल्लाह के नबी अहमद मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा (सललल्लाहों अलैह व आले वसल्लम) के इस बारे मे जानते थे कि इसमे क्या लिखा (रकम) जाएगा । 1. गदीर-ए-खुम मे हज़रत अली को अपनी उम्मत का मौला हज़ारों अफराद के बीच बना देने के बाद और सबसे हज़रत अली के हाथ पर बैअत लेने क

नमाज़ पढे या क़ायम करे!

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नमाज़ को अरबी भाषा मे सलात कहा गया है। फारसी भाषा मे नमाज़ कहा गया है नमाज़ पढे या क़ायम करे, नमाज़ मे ही सूरे पढ़ी जाती है सूरे मुज़्जमिल मे ज़िक्र है “व अकीमुस सलात व आतुज़ ज़कात व अकरिज़ुल्लाह करज़न हसना “ इसमे अकीमुस सलात “ कायम करो सलात को । अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हुक्म दिया है सलात (नमाज़) को क़ायम करो । क़ायम करना किसे कहते है और पढ़ना किसे कहते है क़ायम करना किसी ऐसे कार्य को क्रमबद्ध जारी रखना है । पढ़ना का अर्थ है कि आप किसी भी बिना मुताईयन (निर्धारित) किए जब चाहे पढे । इसमे वक्त की मियाद (LIMIT) नहीं है । अब एक बेहतरीन नज़ीर के ज़रिए क़ायम को समझा जा सकता है । इंसान या जानदार के दिल की धड़कन को समझे । अगर एक धड़कन के बाद धड़कना बंद हो जाए तो इंसान या जानदार की मौत हो जाएगी और लगातार धड़के तो ज़िन्दगी की निशानी है यह लगातार धड़कना क़ायम होना कहलाता है । क्या लगातार धड़कने मे दिल आराम भी करता है जी हाँ एक्सपर्ट (माहरीन) की राय है कि दिल की दो धड़कनों के बीच दिल आराम भी करता है । सलात (नमाज़) क़ायम करने का जो हुक्म दिया गया है उसे लगातार बनाए रखने के लिए है अर्थात क़ायम करने के लिए है । जैसे फ़जर की सलात (

शिया सहाबा को नहीं मानते !

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अक्सर लोगों के बीच इस तरह की अफवाह फैलाई जाती है कि शिया सहाबा को नहीं मानते अब सवाल यह पैदा होता है कि किस सहाबा को नहीं मानते और किस सहाबा को मानते है क्या सभी सहाबा को नहीं मानते । सभी सहाबा को हक़-ब-जानिब अल्लाह सुभान व तआला ने भी नहीं माना इसकी दलील सूरे मुनाफिकून मे दी गयी है। “सूरे मुनाफिकून (63) रसूलउल्लाह (सल्लललहों अलैह व आले वसल्लम) ये मुनाफ़कीन आप के पास आते है तो कहते है कि हम गवाही देते है कि आप अल्लाह के रसूल है और अल्लाह भी जानता है कि आप उस के रसूल है लेकिन अल्लाह गवाही देता है कि ये मुनाफ़कीन अपने दावे मे झूठे है । 2. उन्होंने (यानी मुनाफ़कीन) ने अपनी कसमों को सिपर (ढाल) बना लिया है और लोगों को राहे अल्लाह से रोक रहे है यह उनके बदतरीन आमाल (काम) है जो यह अंजाम दे रहे है । 3. यह इसलिए है कि यह पहले ईमान लाए फिर काफिर हो गए तो उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई तो अब कुछ नहीं समझ रहे है । 4. और जब आप उन्हे देखेंगे तो उनके जिस्म (शरीर ) बहुत अच्छे लगेंगे और बात करेंगे तो इस तरह कि आप सुनेने लगें लेकिन हकीकत मे यह ऐसे है जैसे दीवार से लगाई हुई सूखी लकड़ीयां कि ये हर चीख को अ

नागरिकता का प्रमाण

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सबसे पहले यह जानते है कि नागरिकता क्या है गुलामी मे क्या नागरिकता थी ? राजाओ के राज्य मे प्रजा की नागरिकता क्या थी ? आज़ाद भारत मे नागरिकता क्या है । नागरिकता का प्रमाण क्या है ? आज़ादी से पहले राजा के राज मे निवास करने वाली उसकी तमाम प्रजा उस राजा की प्रजा कहलाती थी उस प्रजा को नागरिक मान सकते है । गुलाम भारत मे राजाओ के राज्य को छोड़कर जितने भाग पर ब्रिटिश हुकूमत का कब्जा था वो सब ब्रिटिश नागरिक थे । गोवा पुर्तगाल के अधीन था इसलिए गोवा मे निवास करने वाले पुर्तगाली नागरिक थे । इंडियन पार्टीशन एक्ट 1947 को ब्रिटिश संसद से पारित करने के पश्चात ब्रिटिश इण्डिया को दो हिस्सों मे बाँट दिया गया एक इण्डिया और दूसरा पाकिस्तान । इन दोनों देशों मे रहने वाले इण्डिया और पाकिस्तान के नागरिक हो गये। दोनों देशों की सीमाये जब तक एक दूसरे के नागरिकों के लिए खुली हुई थी तब तक दोनों तरफ के नागरिक आ जा सकते थे और नागरिकता प्राप्त कर सकते थे । इसके पश्चात 1947-1948 मे जम्मू और कश्मीर के विलय के साथ जम्मू और कश्मीर के लोगों को भी भारत की नागरिकता प्राप्त हो गयी । इसके पश्चात हैदराबाद (दक्खिन) जो निजाम